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जमीन को लेकर कि हत्या

 

जमीन को लेकर कि हत्या

जब हद से ज्यांदा जुर्म होने लगे और शासन व प्रशासन से किसी भी प्रकार की कोई सहायता नहीं बल्कि हमेशा यह कहा जाये की जॉच-जॉच और बस जॉच चल रही है। कोर्ट से हमेशा तारीख व तरीख ही मिलती रहे। ऐसे में हर किसी का माथा ठनकता है पर क्या करे क्या न करे ऐसी स्थिति सामने आती है। तब हम अपनी राह से गुमराह हो जाते है।

लेकिन आज के समय में न किसी अधिकारी को देश की चिंता और न ही किसी प्रशासनिक  राजनेता को बस हर तरहफ एक ही सिलसिला है और वह है रिस्वतखोरी का जहॉ से थोड़ी सी उम्मीद या पैसा मिले वही पर सभी दुम्म हलाने लगते है। 

नतीजा यह निकलता है कि जिस व्यक्ति या युवा को देश के लिए आगे बड़ना था वह गुमराह होकर कानून को अपने हाथ में ले लेता है और ऐसा ही हो जाता कि वह अपराधी की श्रेणी में आ जाता है इसका जिम्मेदार और कोई नहीं सिर्फ और सिर्फ हमारा सिस्टम है जो आज जंग लगा खामोस है और युवा गलत राह पकड़ रहे है। 

इसको सही करने की जिम्मेदारी किस की है वो जो अपने कार्य एवं दो समय की रोटी के लिए मेहनत मजदूरी करता है या फिर वह जो अपने भाषणों से सबको बादा किया करते है हम आपकी मदद करेगे लेकिन उनके ही सदस्य या जानने बाले उन्हंे हालात पर बेकाबू कर देते है। 









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